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RAJESH KUMAR

Tragedy

4  

RAJESH KUMAR

Tragedy

बदलते से लगते अपने गाँव हैं!

बदलते से लगते अपने गाँव हैं!

2 mins
315



बदलते से लगते अपने गांव हैं

दुकान की जगह,छोटे स्टोर हैं

पगडंडियों पर अब टाइल्स हैं

दूध के लिए डेयरी के बोर्ड हैं।


गाँव अवसर लिए, बेशुमार हैं

शहरों से ठाठ, अपने गांव हैं

ब्यूटी पार्लर ,जिम ,स्टाइलिश 

बाइक मॉडर्न,खाना फास्ट फूड 

पैकेट डिबाबन्द वहां भी आम हैं।


"बैठक' में मिलना कभी कभार है

मिलना जुलना ,कहां वह बात है?

दरवाज़े अब हर एक के द्वार है

फिर भी मसले निपटाते साथ हैं

क्या रिश्तों में पुरानी सी बात है?

 

स्कूल,अस्पताल प्राइवेट पास है

सरकारी से मोहभंग ,पैसा पास है

बैंक, एटीएम चौरोहों पर आम हैं

बदलता सा अपना गाँव है ,,


अब सब साथ करते काम हैं

"डीजे" पर करते नागिन डांस हैं

बुजुर्ग "बेमन" बच्चों के साथ हैं

घूंघट पल्लू,तीज त्यौहार की बात है


सड़कों की रफ्तार तेज है 

घूमना फिरना अब आम है

सड़क ,संस्कार बदल रहे हैं 

पैर ना छूकर, अब प्रणाम है 

कुछ को वह भी ना गवांर हैं।


हर गांव पास मदिरा दुकान है 

मोबाइल हर किसी के पास है 

खाली समय वही साथ-साथ है 

खलिहान किनारे,खड़े मकान है

शहर सी "तन्हाई" अब साथ है।


बदलते गांव की तस्वीर साफ है 

तरक्की दिखती भी बेहिसाब है 

अजान-आरती अच्छी सी बात है

रिश्तों का बंधन पुरानी सी बात है

बदलते से लगते अपने गांव हैं।।



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