बढ़ती मंहगाई
बढ़ती मंहगाई
प्रगतिशील युग में
ज़माना बदल रहा है
दुनिया बदल रही है
तकनीक सुधर रही है
प्रतीक बदल रहा है
आधुनिकता की चकाचौंध में
आज इंसान भी बदल रहा है
मगर महंगाई की मार से बेबस
गरीबी का दामन दहक रहा है
राशन, पानी सब महंगा है
कपड़े पहने भी नंगा है
पाना चाहता है अच्छी ज़िंदगी
लेकिन हालातों से उसका दंगा है
बड़े - बड़े धन्ना सेठों से
बाज़ार यूं भरा पड़ा है
जिनके डंडों की मार से
निर्धन आदमी मरा पड़ा है
बढ़ती मंहगाई के कारण
कुपोषण बढ़ता जा रहा है
बड़ी - बड़ी बीमारियों से, यूं
अस्पताल भरता जा रहा है
साल - दर - साल हर वस्तु का
मूल्य शिखर पर पहुंच रहा है
संग में बेकारी से जूझता व्यक्ति
हर पल दरिया में डूब रहा है...
अब तक कितनी सरकारें बदली
ना जाने कितने नेता बदल गए
महंगाई पर ना हुआ नियंत्रण
जनता के दिल यूं दहल गए...।