ज़िंदगी का सफ़र
ज़िंदगी का सफ़र
ज़िंदगी का सफ़र सतरंगी है
मधुर धुन सुनाती श्रंंगी है
सुख-दुख का जो संगम है
मानो चूड़ी संग कंगन है
कभी करुणा से हम भरे हुए
कभी श्रृंगार कर हम सजे हुए
कभी नेह बन्धन में बहक गए
कभी क्रोध ज्वाल में भड़क गए
कभी पंछी-सा हम चहक गए
कभी फूलों-सा हम महक गए
कभी नफ़रत में हम अड़ गए
कभी रिश्तों के लिए तड़प गए
कभी मेहनत से नाम कमाया हमने
कभी खुद में अभिमान समाया हमने
कभी अपने को नम्र बताया हमने
कभी स्वयं को बेशर्म बनाया हमने
कभी परोपकार की राह चले हम
कभी दूसरों का हक मार चले हम
कभी प्रभु शरण की चाह रखे हम
कभी आडम्बर कह कटाक्ष करे हम
कभी जीवन में मौज करे हम
कभी भिक्षुक बन शोक करे हम
यूं ही चलता है प्यारे ज़िंदगी का सफ़र
खट्टी-मीठी यादें मिलती हमको हर डगर।