प्रतिशोध
प्रतिशोध
प्रतिशोध के भाव में
कभी न सुख पाओगे
पल-पल हर पल तुम
अपना खून जलाओगे
रह जाओगे रात-दिन
योजना बनाते-बनाते
बिछड़ जाओगे खुद से
अपने नाश के बीज बोते
कई जन्मों के बाद तुमने
ये मनुष्य जन्म पाया है
ईर्ष्या-द्वेष की आग में
छिपी पतन की छाया है
प्रतिशोध की ज्वाला तुम्हारे
जीवन का संहार करेगी
हे! मानव प्रभु भक्ति से ही
नैया तुम्हारी उस पार लगेगी।