बड़े शहर का दस्तूर…
बड़े शहर का दस्तूर…
हाँ, मैं एक छोटे शहर से हूँ !
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
काफ़िलें खींच लाता है, हर बार यहाँ !
मुझे इसका सुरूर, समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
हर श़ख्स को जल्दी है यहाँ, कहीं पहुँचने की!
इस बेपरवाह रफ़्तार का, मुझे जूनून समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
बच्चों के पार्क में,
लव बर्ड्स का इज़हार-ए-इश्क़ वाला आइडिया, मुझे फ़िज़ूल समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
रोज़मर्रा की बातें अंग्रेजी में,
उस पर हिंदी ना आने का, गुरूर समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
समंदर किनारे, खूबसूरत नज़ारें, क्या नहीं है यहाँ पर ?
फिर लोगों का पब वाले शोर का, फ़ितूर समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
बहुत कुछ सिखा देता है, ये शहर चंद मिनटों में !
पर अपने शहर की तहज़ीब भूल जाना, हमे हुज़ूर समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
उम्र तो ढलती यहाँ भी है, पर ओल्ड ऐज होम्स में !
उन उम्रदराज़ लोगों का मुझे, कुसूर समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
घर कम और इमारतें बेहिसाब हैं यहाँ !
इन इमारतों का नशा, मग़रूर समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
तंग गलियों, तंग मकानों में, रहते तो बहुत करीब हैं !
फिर प्राइवेसी के नाम पर पड़ोसियों को ना जानने का, उसूल समझ नहीं आता।
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।
हाँ, मैं अब भी एक छोटे शहर से हूँ !
इस बड़े शहर का मुझे, दस्तूर समझ नहीं आता।।
