फ़ौजी की बेटी...
फ़ौजी की बेटी...
अब की जो कलम उठा ली है, तो सोच रही हूँ बहने दूँ।
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
बाबा के संग हर लम्हे को, खुल कर मैं रोज़ जी लेती हूँ,
इमरजेंसी के सायरन को कुछ ऐसे, जीवन में सी लेती हूँ।
हफ्तों तक कोई खबर नहीं, उस बेचैनी को बहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
सत्ता के खेलों से जब भी, कोई युद्ध परिस्थिति आई है,
ऐलान-ए-जंग की सब खबरें, टीवी पर ही तो छाई हैं।
वो जंग न होने देने की, मेरी हर आशा बहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
यारों की महफ़िल चर्चा में, जब भी फ़ौजों को लाती है,
कैंटीन, एम.एच, सस्ती दारु के फ़ायदे ही तो गिनवाती है।
शहीद की बेवा के आँसू से, उनके भ्रम, मिथ्या ढहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
पुरानी आदतें बदलते भी, कई साल गुज़र जाते हैं,
मकान बदलने की बात सोच, लोग घबराते हैं।
हर साल बदलते फ़ौजी के क्वार्टर को कहानी कहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
घर बार चलाने को पल पल, पसीना तो बहुत बहाते हैं,
महंगाई के ज़्यादा होने पर, नारे भी खूब लगाते हैं।
उन धरनों की सुरक्षा में भी, जब फ़ौजी का खून मैं बहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
महिलाओं के शोषण में, फ़ौजी का नाम जो लेते हैं,
कोई पूछे जाकर सीमा पर, क्यों जान ये फ़ौजी देते हैं ?
मीडिया के गंदे खेलों को, टीवी-अखबारों में रहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
है नहीं थकी, अब भी कलम, आगे भी सच बतलाएगी,
पर देश प्रेम की वो शक्ति क्या जनता में ला पाएगी ?
झूठे इल्ज़ामों का, फ़ौजी को, बोझ नहीं अब सहने दूँ,
एक फ़ौजी की बेटी होने की, सब सच्चाई कहने दूँ।
