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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Abstract

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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

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बचपन

बचपन

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बचपन सुहाना याद आये

खेलते थे मिल गलियों में

कभी हंसते कूदते रहते थे

कभी नृत्य करे गलियों में।

    

चोरी-छिपे फल खाते थे 

लाते थे तोड़ तोड़ कर घर,

नहीं भूले हैं उन दिनों को

यादें रहे सदा सदा अमर।

   

स्कूल से जब घर आते थे

किसी बाग में घुस जाते थे,

पत्थर और डंडे से तोड़के

मीठे मीठे फल यूं खाते थे।

        

मित्रगण कई साथ होते थे

वो भी करते थे सदा मदद,

नहीं भूले हैं उन दिनों को

याद करके हो जाते गदगद।

        

कभी शिक्षक की मार पड़े

कभी माता पिता सताते थे

फिर भी हम चोरी चुपके

इन बागों में छुप जाते थे।

        

लौट के आएंगे नहीं दिन

ले लो चाहे लाख बलाएं

बस भूली यादों को अब

निज दिल पर खूब सजाये।


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