बचपन
बचपन
रोज़मर्रा की गफ़लतों को एक दिन कहीं छोड़ आते हैं
खुद को फिर से जीना सिखाते हैं
चलो एक दिन अपना बचपन जी आते हैं ।
चलो एक दिन करते हैं बेवजह झगड़ा,
दो उंगलियों को छूकर फिर झट से उन्हें सुलझाते हैं
चलो फिर से खुद को दोस्ती के मायने सिखलाते हैं
आओ चलो, एक दिन अपना बचपन जी आते हैं ।
जहां ज़िद हो तो सिर्फ़ एक खिलौने की
बेट- बॉल की या उस नन्ही सी गुड़िया की
चलो इस बार भी, एक चॉकलेट में मान जाते हैं
चलो एक दिन अपना बचपन जी आते हैं ।
जहां फिक्र हो सिर्फ़ परीक्षा में पास होने की
जहां खेल हो तो सिर्फ़ गुल्ली-डंडा और लंगड़ी
चलो नदी पहाड़ में ही सारी ऊंच-नीच छोड़ आते हैं
चलो फिर से अपना बचपन जी आते हैं ।
जहां बोझ हो तो सिर्फ़ किताबें, वो लम्बा रास्ता
गले में झुलती बोटल, और ढेर सारी बातें
चलो बातें करते हैं और ये बोझ उठा ले जाते हैं,
चलो यार ! एक दिन फिर से अपना बचपन जी आते हैं ।
वो पाक़ मन, वो बेबाक हंसी, और वो बेवजह का रोना
शायद इतना मुश्किल भी नहीं है अपना बचपन जीना
तो चलो बीते पलों से थोड़ी गूफ्त़गु कर आते हैं
एक दिन के लिए ही सही, अपना बचपन जी आते हैं ।।