बचपन
बचपन
क्या खूब जमाना था, बचपन वो हमारा था
पल पल में जीवन था, खुशियों का खजाना था।
पल भर में हंसते थे, दूसरे पल रोते थे,
मम्मी की थपकी में जन्नत का नज़ारा था।
शोहरत या बुलंदी हो, कुछ फर्क नही पड़ता
बस अपनी ही धुन का संसार हमारा था।
न भूख कभी लगती, न प्यास ही प्यारा था
माता की आँचल ही संसार हमारा था।
बस खेलते थकते थे, गिरते थे संभलते थे
गर हाथ जो फेरे मां, फिर चैन से सोते थे।
बाबा जो आते थे, तो टॉफियों मिलती थी
हो कोई जरूरत भी, सब पूरे होते थे।
बाबा के पैसों पर क्या ऐश हुआ करता
अब अपने पैसों से खर्चे बस नहीं होते।
तब कल की न चिंता थी, अब हर पल रहती है
तब आज में जीते थे, अब आज नहीं होता।
रोना षड़यंत्र रहा जब काम ना होता था
माँ, बाबा से लड़ती रोना नहीं सहना था।
बाबा भी हंस करके जब लाड़ लड़ाते थे
जग जीत गया जैसे, अहसास हमारा था।
है बहुत सुनहरी याद, जो भूल नहीं सकते
क्या लिखें कि बचपन का, क्या खूब जमाना था।
वो कागज की कश्ती, मिट्टी का घरौंदा था
वो महल भी सपनों का, अब आज से सुंदर था।
