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_ "Kridha"

Comedy Drama Children

4.0  

_ "Kridha"

Comedy Drama Children

बचपन से पचपन तक (सफ़र)

बचपन से पचपन तक (सफ़र)

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बचपन मेरा बीत गया, कुछ हिस्सा छूट गया

मैं था बड़ा शरारती, लोग कहते थे शैतान

मेरी हर शरारत याद है मुझे, कैसे भूलूँ मेरा बचपन 


एक किस्सा मैं सुनाता, आज भी जिसे सोच के हँसता,

जब मैं था छोटा बच्चा, रहा हमेशा फुर्तीला,

गर्मी, सर्दी या हो बरसात, कभी ना भूलता अपना अंदाज़,


मेरी एक शरारत थी बड़ी खास,

मैं और मेरी टोली, सब रहते थे भागने को तैयार,

जानते हो हम क्यों भागते थे,

क्योंकि हम घरों की घंटी बजाते थे,


घर से गुस्से में निकलते थे लोग,

हम भाग जाते थे हर रोज,

याद है मुझे ये बचपन का किस्सा,  

बचपन मेरा बीत गया, कुछ हिस्सा छूट गया


कुछ सालो में हुआ बड़ा, थोड़ा सा जो दुःख हुआ,

मैंने उनकी नींद उड़ाई,

और शिकायत हमारी घर चली आयी,

हुई थोड़ी सी कुटाई, अब हम थोड़े बड़े हो गए भाई,


पड़ने लगे किताबों को, सजाने लगे सपनों को,

वक़्त निकला, समय बीता हम हो गए और बड़े,

शादी हुई बच्चे हुए, जिम्मेदारियां है निभाई,


बचपन से पचपन के हो गए भाई,

छोटी सी है मेरी कहानी, मैंने सुनाई अपनी जुबानी



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