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Sneha Srivastava

Children

3  

Sneha Srivastava

Children

बचपन खोते बच्चे

बचपन खोते बच्चे

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समय से पहले बड़े होते बच्चे

बचपन खोते बच्चे।

मासूमियत पर काले बादल

इस झूठी दुनिया में गुम होते बच्चे।

वह भूखे पेट की आग में

एक एक रोटी को रोते बच्चे।

पढ़ने-लिखने की उम्र

यहां-वहां बोझा ढोते बच्चे।

किसी कार के शीशे को धूलते

ट्रैफिक में नंगे पैर घूमते बच्चे।

किसी ढाबे तो किसी घर में

झूठे बर्तन धोते बच्चे।

कटोरी में रख कर सारी गैरत

बेगैरत बार-बार होते बच्चे।

कितने बेबस होंगे वह मां-बाप

सोचते क्या ऐसे ही होते

गरीबों के बच्चे


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