बचपन अब बचपन नहीं है
बचपन अब बचपन नहीं है
पतझड़ नहीं तो सावन कहां है।
बचपन भी अब बचपन कहां है।
वो खेतों में जाना ।
छिपते- छिपाते अमरुद चुराना।
माली का आकर डांट लगाना।
बचपन नहीं तो खेत कहां है।
बचपन भी अब बचपन कहां है।
वो खुशियों का पीछे से दौड़ लगाना।
गालों का टमाटर-सा लाल हो जाना।
कभी घर पर ही मित्रों का आकर रह जाना ।
पापा का जाकर उनके घर पर बताना।
बचपन नहीं तो अपनत्व कहां है।
बचपन भी अब बचपन कहां है।
आंटी के घर से आमों का आना।
खेत-खलिहानों में पिकनिक मनाना।
बचपन नहीं तो वो गप्पें कहां है।
बचपन भी अब बचपन कहां है।
झूले से गिरने पर सबका आ जाना।
डॉक्टर को जाकर घर पर ले आना।
वो पहर नहीं तो एहसास कहां है।
बचपन भी अब बचपन कहां है।
दादी-नानी से कहानी को सुनना।
सिर को सहलाते हाथों को चूमना ।
वो जज्बात वो बातें नहीं है।
बचपन अब बचपन नहीं है।