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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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बचपन अब बचपन नहीं है

बचपन अब बचपन नहीं है

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पतझड़ नहीं तो सावन कहां है।

 बचपन भी अब बचपन कहां है। 


 वो खेतों में जाना ।

 छिपते- छिपाते अमरुद चुराना। 

 माली का आकर डांट लगाना।

 बचपन नहीं तो खेत कहां है। 

 बचपन भी अब बचपन कहां है।


 वो खुशियों का पीछे से दौड़ लगाना। 

गालों का टमाटर-सा लाल हो जाना। 

कभी घर पर ही मित्रों का आकर रह जाना ।

पापा का जाकर उनके घर पर बताना।

बचपन नहीं तो अपनत्व कहां है।

बचपन भी अब बचपन कहां है।

 

आंटी के घर से आमों का आना।

खेत-खलिहानों में पिकनिक मनाना।

बचपन नहीं तो वो गप्पें कहां है।

बचपन भी अब बचपन कहां है। 


झूले से गिरने पर सबका आ जाना।

डॉक्टर को जाकर घर पर ले आना।

वो पहर नहीं तो एहसास कहां है।

बचपन भी अब बचपन कहां है। 


दादी-नानी से कहानी को सुनना।

सिर को सहलाते हाथों को चूमना ।

वो जज्बात वो बातें नहीं है। 

बचपन अब बचपन नहीं है।


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