बचेगा शून्य तुम्हारे बाद
बचेगा शून्य तुम्हारे बाद
नदी के दोनों तट हैं मौन,
सुना पर कानों ने सम्वाद ।
खुले जब बंद प्रणय के पृष्ठ,
जगी तब महकी महकी याद ।।
ह्रदय के टुकड़े हुए अनेक
मिले अपनों से जब आघात ।
हुई जिस समय भोर से दूर
बिलख कर रोई थी तब रात ।
चैन से सोते कैसे प्रश्न
तड़प कर जाग उठी फ़रियाद....
नदी के दोनों.......।।
तुम्हें यदि जाना ही था दूर
हुए क्यों अंतर्मन के पास ।
खिलाए क्यों निष्ठा के फूल,
भुगतना था जब यों मधुमास ।
छलक आता आँखों में नीर
सिसकता फिर अन्तस का नाद ....
नदी के दोनों.......।।
लिखा विधि ने ये कैसा भाग्य
बताते नहीं, हुए क्यों रुष्ट ?
नहीं यदि मेरा प्रेम पुनीत
भला फिर किसका पावन पुष्ट?
अभी तक चिन्तन में हूँ लीन,
करूँ किससे, कैसे प्रतिवाद....
नदी के दोनों........।।
सुना था खोना भी है रीति..
न आया कुछ भी मेरे हाथ ।
किंतु आशा है अब भी शेष..
मिलेगा पुनः तुम्हारा साथ ।
नहीं था कुछ भी तुमसे पूर्व,
बचेगा शून्य तुम्हारे बाद ।
नदी के दोनों...........।।