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SOUBHAGYABATI GIRI

Romance Tragedy Thriller

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SOUBHAGYABATI GIRI

Romance Tragedy Thriller

बैरी चाँद

बैरी चाँद

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उस दिन एक खूबसूरत पूर्णिमा की रात थी,

चाँद आसमान में मुस्कुरा रही थी,

और छुप छुप के कमला को देख रही थी,

चाँद की किरणें हर जगह बिखरी पड़ी थी।


छत पर आ गये थे हम दोनो,

मन बहुत खुश था,

मैंने सोच रहा था की उसके साथ चाँद की रोशनी में बैठूंगा

और बहुत सारी मिठी मिठी बातें करूंगा,

बात करते करते चला जाउँगा आसमान की तरफ।


वहाँ पहुँच के जोर जोर से बोलुंगा,

उधार की रोशनी पर राज करनेवाला ओये चाँद!

में कभी नहीं बोलुंगा आपको खुबसुरत।

आपसे ज्यादा खुबसुरत तो मेरी प्रिया है,

जो बिना उधारी के,बिना रोशनी के चमक रही है।

यकीन नहीं हो रहा है तो चलो धरती पर परखने।


एैसे बोल के तोड के ले आउँगा चाँद को उसके पास

उसकी माथे की बिन्दी बना दुंगा।


लेकिन पता नहीं चाँद कहां छूप गयी,

काला बादल आ गया, गरजने लगा,

और जमकर बरसने भी लगा।

मेरा सारा सपना चकनाचूर हो गया ।

चाँदनी रात भी अमावस की तरह हो गया 

और क्या, उस दिन तो चाँद ही मेरे लिए बैरी निकला।


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