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ankit kumar

Drama Fantasy

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ankit kumar

Drama Fantasy

बैराग

बैराग

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मैं कुछ दिनों के लिए बैरागी बनना चाहता हूँ,

अपनी दिल की कुछ मुरादें पूरी करना चाहता हूँ,

चाहता हूँ कभी जियूँ अपने लिए भी,

अपनी बात भी कभी सुनना चाहता हूँ।


छोड़ कर सारे रिश्ते नाते,

चला जाऊँ वहाँ जहाँ कोई ना आते-जाते,

किसी की परवाह न करना चाहता हूँ,

मैं कुछ दिनों के लिए बैरागी बनना चाहता हूँ।


सुकून पाऊं मैं खुद में ही,

जी लून अपनी जिंदगी उस छण ही,

उस खुदा से एक बार मिलना चाहता हूँ,

मैं कुछ दिनों के लिए बैरागी बनना चाहता हूँ।


अपने अंदर छुपे उस कमी को ढूँढना चाहता हूँ,

लहर जगा दे जो उस ओस की नमी को ढूँढना चाहता हूँ,

राख बनने से एक पहले आग बनना चाहता हूँ,

मैं कुछ दिनों के लिए बैरागी बनना चाहता हूँ।


भटकूँ उस की तलाश में जो सब को न मिलता है,

सामने होता तो है पर किसी को न दिखता है,

बस उस ऊँचाई को एक बार पाना चाहता हूँ,

मैं कुछ दिनों के लिए बैरागी बनना चाहता हूँ।


होगा मुमकिन तभी जब नाता तोडुँगा सबसे,

उस उचाई को तबही पाऊँगा जब रिश्ता जोड़ुँगा रब से,

मैं बस थोड़े समय के लिए अपना होना चाहता हूँ,

मैं कुछ दिनों के लिए बैरागी बनना चाहता हूँ।


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