Satyendra Gupta

Abstract

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Satyendra Gupta

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बातें

बातें

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आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है

कुछ बातें नई और पुरानी हो जाती है

कुछ भूल जाते और कुछ याद रह जाती है

बातों से दिल खुश और बातें दिल दुखा जाती है

आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है।


बातों से ही रामायण हो गए

बातों से ही महाभारत हो गए

दुर्योधन पे हंसने से द्रौपदी की

असहनीय चीरहरण हो गए 

बातों से ही बात बन जाए

और बातों से ही बात बिगड़ जाती है

आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है।


समय जब गुजर जाए तो बातें ही रह जाती है

बीच राह में कोई छोड़ जाए तो यादें रह जाती है

संघर्ष के दौर में रात दिन पर्वत सा लगता था

भविष्य में अच्छा होगा सपना सा लगता था

बातों हो बातों में सारे दौर गुजर जाता है

दर्द में आंखें यूं ही लाल हो जाती है

आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है।


कमजोर को हर कोई बात सुना जाता है

बाहुबली के सामने वही सब सुन जाता है

जैसे दीपक को हवा बुझा जाता है

वही आग को बढ़ावा दे जाता है

सभी बातों को आंखें बंद करके हूँ समझता

समझने में कभी जल्दी तो कभी देर हो जाती है

आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है।


बात करने का तरीका होता है अलग अलग

घर में कुछ और, बाहर में कुछ और

दोस्तों के बीच कुछ और दुश्मनों के बीच कुछ और

दिल में कुछ और , मुंह में कुछ और

बातों ही बातों में कुछ यादें रह जाती है

आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है।


बातों से हैवान इंसान बन जाते है

बातों से इंसान हैवान बन जाते है

बातों से जब समुद्र ना दे रास्ता

तो रास्ते बनाने को धनुष उठाने पड़ जाते है

दिल की अरमा जब दिल में रह जाए

अरमानों की फिक्र कहां किसी को होती है

आंखों ही आंखों से बातें भी हो जाती है।



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