बात कुछ और निकली है
बात कुछ और निकली है
कहानी कुछ और सोची थी, कहानी कुछ और निकली है
मेरे दिलबर के दिल की कहानी कुछ और निकली है
बड़ी फुर्सत से उस रब ने करी थी कारीगरी लेकिन
जो बन के है आई वो जवानी कुछ और निकली है
सुनाई थी जो तूमने ही कहानी फिर से दोहरा दो
मेरे वीरान गुलिसता में डाली फूलों की लहरा दो
तेरे आने से जो खुशबू हवा में घुल सी जाती थी
तू है अब भी वही लेकिन वो खुशबू कुछ और निकली है
खनक थी चूड़ियों मे जो, झनक थी पायलों में जो
बिना शृंगार के लगती थी सादगी चांद सी थी जो
मगर अब दाग जो है लगी उस कोरे दामन में
चुनर धानी सी थी जो तेरी अभी कुछ और निकली है
ये तेरा ही तो कहना था की तू एक दिन छोड़ जाएगी
रहूँगा मैं बिलखता एक दिन और तू दिल तोड़ जाएगी
यही एकसच हुआ साबित बाकी सबकुछ कहानी थी
तू झूठी ही रही हर दम बस इस दफा कुछ और निकली है।

