बासंती ग़ज़ल
बासंती ग़ज़ल
हृदय में देखिये फिर से नवल मधुमास जागा है।
बसी जो संगिनी हिय में तो सोने पर सुहागा है।
कुहुकतीं कोकिलें इतउत सुरीली तान वो छेड़ें
निकाले बोलियाँ कर्कश सुहाता वो न कागा है।
मिटाये दूरियाँ मन की सदा मधुमास जब आता
हृदय को जोड़ने वाला बना वह नेह धागा है।
उपजता प्रेम इस मौसम भले मन शुष्क हो कितना
चले जब तीर अनुरागी न मन रहता विरागा है।
फिरा लीं एक दिन नज़रें विदा जब हो गया मौसम
कलेजा चीर दे ऐसा सनम से घाव लागा है।

