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प्रवीण त्रिपाठी

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प्रवीण त्रिपाठी

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प्रकृति बासंती रंग में

प्रकृति बासंती रंग में

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इंद्रधनुषी रंग में सारी प्रकृति इठला रही।

ऋतु सुहानी आजकल सम्पूर्ण जग को भा रही।


ऋतु बसंती कर रही है हर्ष का संचार अब।

मंद गति से बह रही शीतल सुवास बयार अब।

शीत गर्मी संतुलन ऊर्जा भरे हर व्यक्ति में।


माघ बीता है खड़ा फागुन हमारे द्वार अब।

एक परिवर्तन नई ऋतु हर कहीं दिखला रही।

इंद्रधनुषी रंग में अब तो प्रकृति इठला रही।1


रंग में डूबी प्रकृति नव पुष्प चहुंदिशि खिल रहे।

मंजरी से हैं लदे पादप पवन सँग हिल रहे।

मस्त होकर भीग और भिगो रहे रस रंग में।


नेह के रँग भीग हर दिल अब गले से मिल रहे।

रंग खुशियों के बिखेरे दर्द-दुख पिघला रही ।

इंद्रधनुषी रंग में अब तो प्रकृति इठला रही।


मन प्रफुल्लित हो गए जब फाग के स्वर बह उठे।

झाँझ मंजीरों के सँग में ढोल थापे बज उठे।

धार रंगों की बही अरु बह रहीं स्वर लहरियाँ।


रंग बासंती पहन तनमन सभी के सज उठे।

अब धरा अपने स्वरों को फाग संग मिला रही।

इंद्रधनुषी रंग में अब तो प्रकृति इठला रही।


माघ-फागुन-चैत की तिकड़ी गजब अब सा ढा रही।

इंद्रधनुषी रंग में अब तो प्रकृति इठला रही।


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