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प्रवीण त्रिपाठी

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प्रवीण त्रिपाठी

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बसंत बहार

बसंत बहार

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मधुमासी मौसम जब आता, बदले ऋतु की चाल।

रंगबिरंगे फूल खिल रहे, धरती मालामाल।

भौरे गुंजन कोकिल कूजन, आती है आवाज़।

प्रकृति तान छेड़े नित नूतन, मधुर बजा कर साज।।


निर्मल जल नदियों में बहता, कमल खिले हर ताल

नव पल्लव से दमके पादप, सजा धरा का भाल।

अमराई में अनुपम खुशबू, मादक महुआ फूल।

शीतल सुंदर छटा छा रही, जो ख़ुशियों की मूल।।


कामदेव के पुष्प बाण से, बौराते मन आज।

मधुमय मन ले रहा हिलोरें, भूला मानव काज।

कठिन साधना चंचल मन को, जूझ रहे हैं लोग।

द्वंद छिड़ा है अब धरती पर, चुने योग या भोग।।


हर मौसम पर पड़ता भारी, प्यारा है मधुमास।

ख़ुशियाँ दे जाता जन-जन को, ऋतु परिवर्तन खास।

रंग उमंग भरा हर दिल अब, छेड़े मोहक राग।

ढोल-मँजीरों की थापों पर, बिखरें अनुपम फाग।।



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