रोला छंद में बसंत
रोला छंद में बसंत
सुरभित आज बसंत, फूल अरु भँवरे झूमें
खुशियाँ मिलीं अनंत, हुलस तरुवर पग चूमें।
पवन बहे अति मंद, सभी के मन को भाए
पीने को मकरंद, भृमर दल लेकर आए।
रंग - बिरंगे फूल, छटा ऐसी कुछ बिखरी
मौसम के अनुकूल, छेड़ते खग स्वर लहरी।
फागुन में मदमस्त, नशा रंगों का छाये
भंग न करती पस्त, नशा दुगुना हो जाये।
रास-रंग का जोर, चले फागुनिया ऋतु में
मन होता बरजोर, गोपियों की संगत में।
टेसू और पलाश, बिखेरें छटा सुहानी
मानो वन में आग, जिसे है अभी बुझानी।
चहुँदिशि उड़े गुलाल, करे मौसम रंगीला
रँग में रँगे कपाल, दिखे हर व्यक्ति सजीला।
ऋतु करती शृंगार, सजा कर वन अरु उपवन
"काम" करे व्यापार, बना मधुमासी तन-मन।
