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प्रवीण त्रिपाठी

Abstract

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प्रवीण त्रिपाठी

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वासंतिक चौपाईयाँ

वासंतिक चौपाईयाँ

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मधुमासी ऋतु परम सुहानी,

बनी सकल ऋतुओं की रानी।

ऊर्जित जड़-चेतन को करती,

प्राण वायु तन-मन में भरती।


कमल सरोवर सकल सुहाते,

नव पल्लव तरुओं पर भाते।

पीली सरसों ले अंगड़ाई,

पीत बसन की शोभा छाई।


वन-उपवन सब लगे चितेरे,

बिंब करें मन मुदित घनेरे।

आम्र मंजरी महुआ फूलें,

निर्मल जल से पूरित कूलें।


कोकिल छिप कर राग सुनाती,

मोहक स्वरलहरी मन भाती।

मद्धम सी गुंजन भँवरों की,

करे तरंगित मन लहरों सी।


पुष्प बाण श्री काम चलाते,

मन को मद सेमस्त कराते।

यह बसंत सबके मन भाता,

ऋतुओं का राजा कहलाता।


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