बारिश की बूंदें बड़ी अनमोल हैं
बारिश की बूंदें बड़ी अनमोल हैं
अब के बरखा ऋतु कैसी झूम - झुमकर आई है,
चहुँ ओर खुशियों ही खुशियाँ खिलकर छाईं है !
खेत-खलिहान में कितनी सुन्दर हरियाली लाई है,
बारिश की बूंदों ने देखो कैसी क़यामत सी ढाई है !
भीग रहे हैं सब, ये नन्हीँ बुँदे कितनी अनमोल है,
जलकण के बिना जीवन की कल्पना फिजुल है !
यहाँ वहाँ खिले रहे बड़े खूबसूरत महकते फूल हैं,
इस मौसम में है कोमलता, गर्मी में चुभते शूल हैं !
आज धरा कह रही नभ से त्रिषित हूँ,उपकार करो,
तन मन में प्यास जगी है, अपने जल से सार करो !
किलस रही वसुंधरा कि अंबर मेरी विनती ना टारो,
वृक्ष कहीं ना विलुप्त हों, ऋतुओं को सहेज़कर धरो !

