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V. Aaradhyaa

Romance Classics

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V. Aaradhyaa

Romance Classics

बारिश की बूंदें बड़ी अनमोल हैं

बारिश की बूंदें बड़ी अनमोल हैं

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अब के बरखा ऋतु कैसी झूम - झुमकर आई है,

चहुँ ओर खुशियों ही खुशियाँ खिलकर छाईं है !

खेत-खलिहान में कितनी सुन्दर हरियाली लाई है,

बारिश की बूंदों ने देखो कैसी क़यामत सी ढाई है !


भीग रहे हैं सब, ये नन्हीँ बुँदे कितनी अनमोल है,

जलकण के बिना जीवन की कल्पना फिजुल है !

यहाँ वहाँ खिले रहे बड़े खूबसूरत महकते फूल हैं,

इस मौसम में है कोमलता, गर्मी में चुभते शूल हैं !


आज धरा कह रही नभ से त्रिषित हूँ, उपकार करो,

तन मन में प्यास जगी है, अपने जल से सार करो !

किलस रही वसुंधरा कि अंबर मेरी विनती ना टारो,

वृक्ष कहीं ना विलुप्त हों, ऋतुओं को सहेज़कर धरो !


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