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SN Sharma

Romance Tragedy Classics

4.5  

SN Sharma

Romance Tragedy Classics

बारिश  बिलखती ही रही

बारिश  बिलखती ही रही

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बदलो से भरा आसमां एक दास्तान कहता रहा।

बिजलियों की कौंध में सहमा सा मन सुनता रहा।


आंसुओं सी गिरती हुई बारिश बिलखती ही रही।

जगनुओं का काफिला वन में बेवजह चलता रहा।


झींगरों के गीत मातम भरे कानों को चुभन देते रहे।

खत्म होता तेल दीपक का फिर भी मगर जलता रहा।


वो रात बिरहन सी सिसकती भोर तक ढलती रही

दर्द दिल का मेरे मन को कुछ बेवजह छलता रहा।


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