बारिश भी किंचित रोती है
बारिश भी किंचित रोती है
बारिश भी किंचित रोती है, अनसुनी बातें कुछ कहती है,
धरती के मन की गहराई से, अजनबी यादें लाकर रखती है।
पत्थरों की सड़कों पर जब बारिश छम छम बौछार गिराती है,
बूंदों के टप टप की गुंजन से, मन मंदिर भांप लाती है।
बारिश संग तुम भी आती हो, बूंदों संग यादें गुनगुनाती हो,
हर इक बूंद से ताल मिलाकर, मुस्कान ए अधर बन जाती हो।
हर इक बूंद में घुली मिठास, मानों तेरे लफ्जों का एहसास,
मेघों के लहराते जुल्फों के साये, तेरे आलिंगन का मधुर आभास।
छतरी की छाव में, गर्मी से लदे हुए तन को, शीतलता का आश्रय, प्रकृति वचन समझाती है,
ये बारिश कानों तक आकर, तेरे सिहरन की सरगम गाती है ।
ये तिमिराती रातों की बरसात, सपनों की नगरी बुनती है,
ये क्षण भर की रिमझिम बारिश, सुखमय जीवन को करती है ।
रिमझिम की आवाज में, हर्ष, उमंग छिपा देती है
मन के अंदर यादों को बसाकर , जीवन संगीत पिरो देती है ।