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Deepika Raj Solanki

Children

4  

Deepika Raj Solanki

Children

बाल श्रम के अभिशाप से बचा लो

बाल श्रम के अभिशाप से बचा लो

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 श्रम के फंदे में घुटता बचपन,

चीख -चीख यह कहता है,

चाय की दुकान का छोटू नहीं,

मुझे मां! औरों की तरह पढ़ना लिखना है,


क्यों हाथ में मेरे कुदाल पकड़ा दी तूने,

मुझे ही क्यों पकड़ चाय की केतली,

इस स्टेशन से उस स्टेशन तक,

बन छोटू हर रोज़ अपना बचपन बेचना पड़ता हैं,


चाहे मन मेरा खिलौनों और दोस्तों साथ समय बिताना,

नुक्कड़ में बैठ बाबा के साथ चाय समोसे खाना,

 मैं भी चहता कुछ देर और सोना,

सुबह-सुबह उठा तुम, 

क्यों भेज देती बांटने अखबार हो ?


मेरा बचपन खा रहा है,

मिट्टी -गारा ,कोयले की खान,

मालिक की डांट से मैं सहन जाता हूं,

उठ- उठ कर मां- मां चिल्लाता हूं,

तेरी दवा, बाबा की दारू में 

 घुलता बचपन सारा,

नन्हे हाथों पर छाले, टूटी चप्पल ,गंदे कपड़े,

 और मालिक के ताने,


मन पर मेरे जामा होते कड़वे अनुभव ये सारे,

बन लावा ये फटेंगे सारे,

दूषित व्यक्तित्व क्यों दे रहे हो तुम सारे,


बचपन मेरा नहीं मांगता तुमसे कुछ ज्यादा,

कुछ सिक्कों की खनखनाहट पर

बाली मत दो मेरे बचपन की

 अभाव में भी जी लूंगा,

 बस दे दो वापस सौगात मेरे बचपन की,

 कारखाने के दरवाजे नहीं,

 स्कूल की चौखट तक पहुंचा दो,


 जो नाम अपना भूल गया हूं मैं,

फिर से जिंदा उसे करा दो,

भीख इतनी मांगता हूं तुझसे मां!

बाल श्रम के अभिशाप से बचा लो।


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