होलिका दहन
होलिका दहन
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होलिका दहन
पूर्व संध्या होली की
हम दहन होलिका करते हैं
है प्राचीन कथा इसकी
असुर हिरण्यकशिपु जब
विष्णू से शत्रुता रखते थे
अपनी शक्ति जो असुर की
चूर घमंड में रहते थे
कहते बस इस धरती पर
मै ही हूँ पुज्नीय
यज्ञ आहुति बन्द हुई
भगवान को सताया करते थे
उनका पुत्र प्रह्लाद हुआ जो
विष्णू पूजन करता था
उस पुत्र को मारना चाहा
भगवन रक्षा करते थे
असुर बहन थी जो निर्मम
नाम था जिसका होलिका
शंकर से एक चादर पाई
अग्नि मे ना जल सकता जो
चादर ओढ़ अग्नि पर बैठी
ले कर प्रह्लाद गोद मे अपने
चादर उड़ प्रह्लाद को ढाँके
जली होलिका अग्नि में