काँच का बसंत
काँच का बसंत


इस मौसम का पीलापन
कुछ याद दिलाता है
इस विरानी गलियों में
किसी की सांसे फसी हुई है
इस हवा के झोकों में
सुगंध है किसी की
इस धूल भरे सड़को पर
किसी की पदचिन्ह निहित है
और मुझे इन्तजार है कि
शायद वो आ जाये
किसी छण
मैं छत की सीढियों पर
खड़ी खड़ी कुछ सोच रही हूँ
और मुझे याद आता जा रहा है
इस मौसम का अतीत
और चुभता जा रहा है
मन के धरातल पर
यह काँच का बसंत।