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Kanchan Prabha

Abstract

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Kanchan Prabha

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तलाश मंजिल की

तलाश मंजिल की

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जिन्दगी की तपती राहों में

मीठे पानी की प्यास थी

जिन्दगी के समंदर में

कुछ पाने की तलाश थी

हम भटकते रहे

कोई खाश मंजिल पाने को

चमकते चाँद को

हथेली पर लाने की आस थी

जिन्दगी के समंदर में

कुछ पाने की तलाश थी

कभी गिरते कभी सम्भलते

कोई राह पकड़ लिया

उस टूटते तारों में भी

रौशनी कुछ खाश थी

जिन्दगी के समंदर में

कुछ पाने की तलाश थी



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