हिमालय
हिमालय
अरमा है कि चढूँ कभी
मैं भी खड़े हिमालय पर
धीरे धीरे बढूं कभी
इस पवित्र शिवालय पर
आँचल ओढ़े आसमां का
चुनर सुनहली धानी में
भारत का सिरमौर है ऐसा
डिगे ना आँधी पानी में
दिल करता है घर बना कर
रहूँ गिरिराज आलय पर
अरमा है कि चढूँ कभी
मैं भी खड़े हिमालय पर
पवन के झोंके चूमे इसको
वर्षा भी नहलाती है
दुश्मन से ये रक्षा करती
हिंद प्रहरी कहलाती है
करुँ नमन पूजन भी
कभी इसी देवालय पर
अरमा है कि चढूँ कभी
मैं भी खड़े हिमालय पर
