STORYMIRROR

Kanchan Prabha

Abstract

4  

Kanchan Prabha

Abstract

पहाड़ पर साँझ

पहाड़ पर साँझ

1 min
493

साँझ सबसे भ्रमित पहर

धूमिल सा प्रखर

पहाड़ पर साँझ

एक मनोहर वृतांत


भविष्य में मुख के समक्ष

तस्वीर घूमता हुआ

मन विचलित होता हुआ

भूत की याद दिलाता हुआ


हर क्षण की हर साँझ की

वह धूमिल धूल या धुआँ

दरख्त के ऊपर से गुजरता हुआ

आकाश को छूता हुआ


कहीं दूर एक दीया

गरीबी का प्रतीक

पहाड़ी के नीचे टिमटिमाता हुआ

सड़क से चार पहियों की गर्जना


एकाध बार चितकारती हवा के साथ

आज भी मन चक्षु के किसी कोने में

पहाड़ पर साँझ की खामोशी व्याप्त है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract