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Deepika Raj Solanki

Tragedy

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Deepika Raj Solanki

Tragedy

रोज-रोज सुनकर यह

रोज-रोज सुनकर यह

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रोज-रोज सुनकर ये...

कुछ हैरान और कुछ परेशान हो जाती हूं,-

"फिर खाने में आज वही दाल और सब्जी!"

मुंह सिकुड़ता हुआ बेटा, और नाक फुलाती हुई बेटी

रोज सुनाते मुझको यही एक पंक्ति।

गुस्से से होकर कभी लाल मैं देखती अपने पतिदेव के हाल,

मुंह से कुछ नहीं वह मुझसे कहते,

इशारा कर बच्चों को कहते,

बनाया है यह मां ने मेहनत से,

खा इसमें से तुम कुछ थोड़ा,

करता हूं शाम को ऑर्डर तुम्हारा पिज्जा, सांभर और बड़ा,

रोज-रोज हमसे नहीं यह सब्जी खाई जाती,

मम्मी को भेज कुकरी क्लास , सीखा दो कुछ बनाना नया ,

यह सुन पारा बढ़ता है मेरा,

यहां है ड्रामा हर घर का,

नहीं इस में कुछ नया..


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