शीर्षक - सावन ना भाए _______
शीर्षक - सावन ना भाए _______
कनक -कंचन कुछ ना भाए
सावन मुझे पसंद ना आए
पहाड़ मेरी देवभू के गिर -गिर जाए।
नयन आसवन से भर जाए,
बादल फट-फट
धरा को बहा ले जाए।
निवास -आवास ,जन, सम्पदा मिट -मिट जाए,
जब -जब छाती धरती की फट जाए ।
सावन में यह कैसी आफ़त आए
कोई तीज ना कोई त्यौहार,
ना रही शेष कोई पेड़ की डाल,
डाल झूले जहां गाए मंगल गान,
हर ओर फैला मौत का तांडव,
धराशायी हो रहे हैं नज़राए पहाड़ ,
दुश्मन बन सौंदर्य,
आधुनिकता की अंधी दौड़ में हो रहे अपंग पहाड़,
सविनय प्रार्थना कर रहे,
दे दो वापस हमें हमारे आधार
कच्ची मिट्टी और पेड़ का साथ,
खुशहाल पहाड़ हरियाली और तीज का साथ,
दे दो वापस हमें हमारे नाद नदी और नाल,
नहीं चाहिए गगनचुंबी होटल, गृह आराम
भोले के हैं साधक साधु साथी,
नहीं चाहिए झुनझुना विकास के नाम,
जो लूट ले खेल खिलौने हमारे बच्चों के हाथ,
अब और नहीं त्रासदी देखी जाए,
सावन हमें खूब रुलाए,
भादो तक कितने अपने छूट जाएं।