मां
मां
इस जीवन का प्रकाश पुंज,
परिक्रमा करते जिसकी सब,
पशु हो ,चाहे पक्षी ,
हो चाहे कोई और जीव।
मां है प्रकृति की वह भक्ति
अनुराग से जिसकी सजतीं यह सारी सृष्टि,
अनुकंपा ईश्वर की मां रूप धर-
पुरस्कृत हुई यह धरती ।
मां- शिशु की अनोखी नातेदारी,
भ्रूण अंकुरित हो स्त्री मां कहलाती,
मां -शिशु का प्रेम सूत 'गर्भनाल'-
धड़कन शिशु की बन जाती,
मानक अद्भुत प्रकृति का ऐसा
पोषण मां से शिशु को है मिलता,
भ्रूण शिशु रूप में विकसित करता।
अनोखी देखो यह कैसी माया,
सह पीड़ा असहाय,
सौंदर्य मां की बनती काया,
गर्भावस्था बड़भागी,
कृतज्ञ सदैव रहती नारी।
धर जीवन आधर पर
कष्ट सहिष्णु मां जन्म देती जीवन
नन्हा स्पर्श प्रीति नदी बन नम करती नैन,
वामावर्त जीती जीवन शिशु संग,
सखा- सहेली बन, बन गुरु
परिचित कराती मां जीवन के रंग,
पकड़ अंगूठा- हाथ पहला पग धरना सिखाती
बन मार्गदर्शक जीवन पथ पर बढ़ना सिखाती ,
शिशु -बालक -पुरुष में परिवर्तित होती संतान
भरती मां सद्गुण और ज्ञान,
समझ जो जाएं नर और नार
मां की परिकल्पना का सार,
बनता है वहीं स्त्री पुरुष जग में इंसान।