बाल-हास्य-काव्य
बाल-हास्य-काव्य
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खेल-खेल में मेरा बाल-पुत्र सी.आई.डी. बन जाता है ,
अपनी नकली दुनाली से दनादन गोलियां बरसाता है ।
एक दिन उसके दोस्त ने आकर एक बुरी खबर सुनाई,
आंटीजी रिषभ ने खून किया,पुलिस उसको लेने है आई ।
उसकी बात सुनकर मैं तो नख - शिख सुन्न हो जाती हूं ,
सब कामों को छोड़छाड़ द्वार तक भागी-भागी जाती हूँ ।
दो बाल-पुलिस ने मेरे पुत्र को गिरफ्तार किया हुआ था,
अन्य दो ने उस लाश को अपने कब्जे में लिया हुआ था ।
लाश के रूप में निकट जमीं पर एक मच्छर मरा पड़ा था,
जिसको देखकर हंसते-हंसते मेरा तो दम ही फूल रहा था ।