पाप का नहीं कोई पश्चाताप
पाप का नहीं कोई पश्चाताप
एक था राजा एक थी रानी
रानी बड़ी निराली थी, गुस्से नखरे वाली थी
राजा बड़ा महान था, परम वीर बलवान था
राज्य में उसकी खुशियां थी, बहती दूध की नदियां थी
राजमहल में बाग था, बाग में एक तालाब था
वहां मछलियां रहती थी, सबका मन बहलाती थी
सोने सा था उसका रूप, जैसे सुबह सुबह की धूप
आंखे हीरे जैसी थी, चम चम चमके करती थी
रानी ने उसको देखा जब, आगे बढ़ी कहानी तब
उसने मन में किया विचार, मछली से बन सकता हार
एक दिन रानी रूठ गई, राजा जी के पास गई
सोन मछलियां ला दो जी, हार मुझे बनवा दो जी
इतना बड़ा तुम्हारा राज, मानो मेरा कहना आज
राजा ने समझाया फिर, किस्सा एक सुनाया फिर
मछली नहीं वह सोन परी, राज्य में खुशियां बन उतरी
रानी ने जब टोक दिया, किस्सा वहीं पर रोक दिया
कुछ न बात सुनूंगी मैं, प्राण त्याग कर दूंगी मैं
मान गए राजा फिर हार, हो कर दुखी गए दरबार
गुस्से में जब रानी ने, जहर मिलाया पानी में
हूई आवाजे कड़क कड़क कर,
मरी मछलियां तड़प तड़प कर
रानी तूने किया है पाप, नहीं है इसका पश्चाताप !
ना कोई राजा, न कोई रानी सोन मछलियां गहरा पानी
बच्चों कैसी लगी कहानी मत बनना जैसी थी रानी !