पानी
पानी
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नल का पानी न बहने दो
आँखों का पानी न मरने दो
खून का पानी न बनने दो
पर पानी बनकर बह निकलोबस एक रूप को न पकड़ो !
बस एक बात पर न अकड़ो !
घड़ा, बोतल, नदी, झील, तालाब
सबमें समाहित हो जाता है
अपने स्थाई अस्तित्व का
जल मूक मंत्र बताता हैI
बेरंग होकर भी पानी
हर रंग में घुलमिल जाता है
अपना कोई रूप नहीं
पर जग का स्वरूप बन जाता है
कोई भेदभाव नहीं करता
हर प्यासे की प्यास बुझाता है
दूसरों के काम आओ
हर दिल को यह समझाता है।
कैसी भी रहें परिस्थितियां
हो कैसा भी आधार,
ढूँढ लो कोई रास्ता खुद ही
बनकर पानी-की-सी धार ।
सबको अपने रंग में रंग लो
या खुद को सबके रंग में रंग दो
अपने जीवन में खुशियाँ भर लो
पर्यावरण में जीवन भर दो !