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Khemkiran Saini

Tragedy

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Khemkiran Saini

Tragedy

विचलित धरा

विचलित धरा

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कंक्रीट का जंगल हर जगह खड़ा

 वन-उपवन होता था जहाँ घना हरा

हरियाली छिनने का क्षोभ हुआ

तो विचलित हो गई है परोपकारी धरा।


मानवता का संबंध जहाँ था गहरा

दंगा-फ़साद,आतंक आज वहाँ ठहरा

हिंसा से कलेजा छलनी हुआ

तो विचलित हो गई यह शांत धरा।


स्वार्थ व लालच का हर तरफ डेरा

नकली मुखौटे के पीछे छिपा चेहरा।

नैतिक संस्कारों का हनन हुआ

तो विचलित हो गई पावन धरा।


 जीवन में कितना विषाद भरा!

डसता है निराशा का अँधेरा!

मानव जीवन इतना दुश्वार हुआ।

तो विचलित हो गई है धैर्यधरिणी धरा !


एक वायरस ने ऐसा कहर ढाया

हर तरफ मृत्यु का बढ़ता साया।

लाशों का भी अपमान हुआ

तो विचलित हो उठी है ममतामयी धरा।


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