बाढ़ और अकाल
बाढ़ और अकाल
कही भयावह बाढ़ आई
कही सूखे ने धरती जलाई
प्रकृति का विकराल रूप
जन धन की हानि भारी
नदियों का विनाशक तांडव
बादलों का भयंकर क्रोध
त्राहि त्राहि करता जीवन
बन गए रक्षक ही भक्षक
एक ओर अथाह जल ने
जीवन संकट में डाला
कहीं जीव - जंतु , पशु - पक्षी
बिन पानी दम तोड़ रहे
सूख गई अंखियां बाट जोहते
अन्नप्रदायिनी बंजर हो गई
बेरोज़गारी, प्रवास, असंतोष
कहीं पानी में फसलें डूब गई
अस्त व्यस्त जन जीवन
कहीं बिन पानी सब सूख गई
थर्रा उठी मां भारती प्रलय से
कोई भूख प्यास से मरे कोई
जल में डूब कर मरे किसी ने
हालातों से हार सांसे तोड़ दी
बह गए कितनी मांओं के अरमान
कितने सपने टूट गए
उजड़ गए खुशहाल आशियाने
कितने राष्ट्रीय संपत्ति और
धरोहरें जल प्रपात में बह गये
देश - गांव छूटा घर भी छूटे
सब रिश्ते - नाते छूट गए
पथरा गई अंखियां रों रों
थम सा गया जीवन।