दो गज़ ज़मीं
दो गज़ ज़मीं
चाहे कितनी भी हाहाकार है,
पर दो गज़ ज़मीं ही दरकार है।
मेरे पास दुकान है
मेरे पास मकान है
मेरे पास जमीन है
मेरे पास आसमान है
मैं ये हूँ मैं वो हूँ
मैं इमका हूं मै ढिमका हूं
मेरा इतना बड़ा कारोबार है।
मैं हदें तय करता हूँ
मैं सरहदें तय करता हूँ
मैं सरकार बनाता हूँ
मैं सरकार गिराता हूँ
मैं फैसला करवाता हूँ
मैं सजा सुनावाता हूँ
मेरे पास पावर है
मेरे पास सरकार है।
मैं दानी हूँ मैं ज्ञानी हूँ
मैं त्यागी हूँ मैं ध्यानी हूँ
मैं इंजीनियर हूँ मैं डाक्टर हूँ
मैं खोजी मैं विज्ञानी हूँ
मैं अहंकार की निशानी हूँ
मैंने किये आविष्कार है।
कोई लुट गया कोई लूट गया
किसी का खाना पीना छूट गया।
कोई डर गया कोई मर गया
कोई मरता मरता भी कुछ कर गया।
सब पेट की मारामार है।
चाहे, कितनी भी हाहाकार है,
पर दो गज़ ज़मीं ही दरकार है।
--एस.दयाल सिंह--