कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी दूरियों से,
कितनी बार।
मंजिल की ओर,
बढ़ते हैं।
दो मुसाफिर,
रह जाता है,
उनमें एक,
सबसे पीछे,
आखिर।
थका- हारा,
गर्मी से,
झुलसता बदन।
बैठ जाता है,
वह एक,
पत्थर पर।
बीते पल की,
एक याद,
जो देती है,
उसके मन पर,
दस्तक।
थक कर,
हार कर
बैठा क्यों है ?
तू मुसाफिर
मंजिल है
तेरी सामने,
होता जा,
तू अग्रसर।
थक कर,
हार कर,
बैठा क्यों है ?
तू मुसाफिर।
मुसाफिर उठता है,
चलता है,
अपनी थकान का
कब उसे
ध्यान रहता है
आखिर आता है,
वह पल,
जब वह
अपनी मंजिल
कर लेता है
हासिल।
