मुफ़लिस
मुफ़लिस
यहाँ ऊँचे मक़ान, जहाँ अर्श को छूते हैं,
वहीँ पास ही मुफ़लिस फ़र्श पर सोते हैं!
बाँधकर कपड़ा भूख को बाँधते हैं यहाँ,
हवा खा के ये अपनी गुरबत को रोते हैं।
बच्चे बीवी यहाँ सब चिथड़ों में जीते हैं,
उन्हीं बिखरे पलों में, खुशियाँ पिरोते हैं।
मुफ़लिसी, गुरबत तो, दिल की सोच है,
यहाँ कई अमीर, दिल से गरीब होते हैं।
मुनादी हुई है मुफ़लिसों को खोजने की,
नेता जी, शहर में आज वापिस लौटे हैं।