मैं
मैं
लोग मुझे
क्या समझेंगे
और क्या नहीं
इससे मुझे
कभी भी कोई
सरोकार नहीं रहा।
निज परिधि में
स्वतंत्रता से
जीना और उसके बाहर
लोगों को जीने देना
स्वभाव है मेरा।
मैं जब भी
शामिल हुई हूँ
होती हूँ
या शामिल होऊंगी
सम्बन्ध ही
निभाती होऊँगी।
मेरा अस्तित्व
और मैं
किसी 'छाप' के लिए
उपलब्ध नहीं
यह दोनों
मेरे अपने एकांत की
धरोहर है।