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mamta pathak

Tragedy

4  

mamta pathak

Tragedy

अवांछित हाँ

अवांछित हाँ

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मैंने कभी कोई दायरा नहीं बनाया

नहीं रखी कभी कोई शर्त

ज़िन्दगी उसकी आज़ाद थी

मगर उसने बनाएं अनगिनत दायरे

रखीं जीने की अनगिनत शर्तें 

मेरी ज़िंदगी उसकी कैद में थी।


अपनी इच्छा से जीने के  

उसने कभी , मेरी इच्छा का न किया

अपनी हाँ के लिए उसने,

नहीं मिलाई कभी मेरी, हाँ में हाँ,

मगर मैंने अपनी एक इच्छा के लिए

उसकी कई अवांछित इच्छाएं पूरी की

उसकी एक हाँ सुनने के लिए 

कई अवांछित हाँ को हाँ कहा।


क़तरा -क़तरा समेटती रही

जानें क्यों पोसती रही ऐसे रिश्ते को

जिसने क़तरा-क़तरा मुझे ही

खोखला कर दिया

मगर उसने कभी नही पोसा 

कभी नहीं समेटा कोई रिश्ता,

वह बस खेलता रहा खेल,

जीतने की होड़ ने उसे, हैवान बना दिया।



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