औरत
औरत
गृहिणी बनी है औरत
चुल्हा-चौंका जलाती है औरत
रोटी पकाती है औरत
बच्चें संवारती है औरत
जिम्मेदारी उठाती है औरत
सुख-दुःख झेलती है औरत
शीश झुकाती है औरत
कदमों की जूती है औरत
दलदल में डूबी है औरत
जंजीरों में लिपटी है औरत
दहलीज़ पर रुकी है औरत
रिश्तों में बिकती है औरत
रोज हजार मौत मरती है औरत!
