औरत एक योद्धा
औरत एक योद्धा
यूँ तो सब ने नारी पे क्या खूब विचार लाया है
जब भी हुआ तिरस्कार वो तिरस्कार ही कहलाया है।
हर धर्म में नारी ही एक आधार है
पर दुनिया का सबसे बड़ा धंधा, नारी का व्यापार है।
पुत्री, बहन, वधु,पत्नी फिर माँ बन जाती है
पर विर्द्धाश्रम में, आँसू लिए माँ क्यों नज़र आती है?
माँ की आंचल से लेकर घूंघट में छुप जाता है
सीना चीर कर दो टूक में वैश्या कह जाता है।
औरत की शक्ति को ही हर बार क्यों परखा जाता है
मीरा बन विष पिये, या फिर सीता को सती किया जाता है।
अल्फ़ाज़ों से धरती चीर कर, हौसले में तूफान लाओ
*औरत एक योद्धा* है, कहकर सिर्फ न अलाप लगाओ।
जुनून का हद ज़िंदा रखो, और इज़्ज़त करो हर नारी की
सकून की नींद उड़ जाए हर व्यापारी की।
उज्जवल धरा के, चारों लोक में नारी ही अभिमान है।
औरत एक योद्धा ही नहीं, ह्र्दय का सम्मान है
