और भी बेटियां है
और भी बेटियां है


निहारती रहती हूँ बाबुल का घर
कितना प्यारा है मेरा बाबुल का घर
आँगन ,सखी,गलियों के सहारे बाबुल का घर
लोरी, गीत ,कहानियों से भरा बाबुल का घर।
बज रही शहनाई रो रहा था बाबुल का घर
रिश्तों के आंसू बता रहे ये था बाबुल का घर
छूटा जा रहा था जैसे मुझसे बाबुल का घर
लगने लगा जैसे मध्यांतर था बाबुल का घर।
बाबुल से जिद्दी फरमाइशे करती थी बाबुल के घर
हिचकियों का संकेत अब याद दिलाता बाबुल का घर
सब आशियानों से कितना प्यारा मेरा बाबुल का घर
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रीत की तरह तो जाना है एक दिन, छोड़ बाबुल का घर।
सोचती हूँ क्या बेटियों को जीने का नहीं होता अधिकार
कोई तो करो सुरक्षा के लिए हमपे कुछ उपकार
भ्रूण -हत्या से जिन्दगी को छिनते मौत के सौदागर
यदि बच जाती तो दहेज़ की मांग करते लोभीधर।
अब तो बूढी आँखों मे आँसू ही बचे होंगे बाबुल के घर
क्या अर्थी सजेगी दहेज़ के दानवों के हाथ पिया के घर
इससे पहले समाज को प्रश्न हल करना होगा पिया के घर
समाज में और भी बेटियां है अपने-अपने बाबुल के घर।