जल की पाती
जल की पाती
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जल कहता है
इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे
प्यास लगने पर तभी तो
खोजने लगता है मुझे ।
बादलों से छनकर मैं
जब बरस जाता
सहेजना ना जानता
इंसान इसलिए तरस जाता।
ये माहौल देख के
नदियाँ रुदन करने लगती
उनका पानी आंसूओं के रूप में
इंसानों की आँखों में भरने लगती।
कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ
जल ही जीवन है
ये बातें इंसानों को कहाँ से
समझाओ ।
अब इंसानों करना
इतनी मेहरबानी
जल सेवा कर
बन जाना तुम दानी।