अटूट
अटूट
बूँदों से बारिश की, बन जाती जो धार।
गतिमान हो, मिल जाती सागर से।
सफ़र में जीवन के, यूँ शामिल हो तुम भी।
बारिश की बूँद भी, धारा तुम, मेरे जीवन की।
इठलाता हूँ मैं इस देह रूपी नाव पर,
उस नाव की तुम पतवार हो,
हाँ !! तुम मेरी जीवनधार हो।
चट्टान सा खड़ा पाता हूँ तुम्हें,
जीवन के दलदल में।
दुःख के मेरे, हर पल में।
हर मुश्किल से बचाती
मेरी अभेद्य दीवार हो।
तुम ही मेरी जीवन धार हो।
तैरती हवा में हँसी,
मुस्कुराहट प्रेम भरी।
धूप भी, छाँव भी तुम मेरी।
प्रेम का इकलौता आधार हो।
यूँ तुम, मेरी जीवन धार हो।